Tuesday, 3 April 2012

तुम तुम थे हम हम थे



तुम तुम थे हम हम थे
अहलादों की अविरल धारा में
निज को ही, निज धागे से
हर ओर पिरोया करते थे
तुम तुम थे हम हम थे !

होंठों पर से शब्दों की आहट से
दिल में सैलाब सा उठता था
बंद जुबा के अनकहे लफ्ज
बिन कहे ही समझे जाते थे
तुम तुम थे हम हम थे !

सागर की घटाओं में खोकर
मन में आकाश सा उठता था
विस्वाश के नीले आँचल में
तारो को पिरोया करते थे
तुम तुम थे हम हम थे !
 
वह प्रणय काल की अभिलाषा
वह मौन नयन की अविभाषा
बूंदों के सागर में अक्सर
रिम झिम को संजोया करते थे
तुम तुम थे हम हम थे !