तुम तुम थे हम हम थे
अहलादों की अविरल धारा में
निज को ही, निज धागे से
हर ओर पिरोया करते थे
तुम तुम थे हम हम थे !
होंठों पर से शब्दों की आहट से
दिल में सैलाब सा उठता था
बंद जुबा के अनकहे लफ्ज
बिन कहे ही समझे जाते थे
तुम तुम थे हम हम थे !
सागर की घटाओं में खोकर
मन में आकाश सा उठता था
विस्वाश के नीले आँचल में
तारो को पिरोया करते थे
तुम तुम थे हम हम थे !
वह मौन नयन की अविभाषा
बूंदों के सागर में अक्सर
रिम झिम को संजोया करते थे
तुम तुम थे हम हम थे !