उस दिन
जब तुमने
क्षण भर को
घोर चिंता अविशवास में समाये
ह्रदय का ह्रदय से
क्षणिक संस्पर्ष किया
हाँथ में हाँथ देकर
एक सुरमई लै समां गई
मधुर इस स्पर्श के संसार में
कुछ भी नहीं था
पर बहुत कुछ बिखरा था पसरा था
यह वह क्षण था
जिसके लिए कोई शब्द नहीं
रचा जा सकता था अव्यक्त सुख I
यह वह क्षण था
जिसके लिए मनुष्य शब्द गढ़ते गढ़ते थक गया
हताशा से जूझ रहा है
यह वही क्षण था
जिसके लिए तमाम रचनात्मकता बाद भी
साहित्य ,कला ,साम के प्रदेताओं ने
अकथ , अगोचर
अगम्य ,अरूप ,स्वरुप,
सब कुछ कहा
कुछ भी नहीं कह पाए
यह वही क्षण था
एक इन्द्रधनुक्षी स्वप्न की
पकड़ से दूर
सुस्म्रती की तरह
जब तुमने
क्षण भर को
घोर चिंता अविशवास में समाये
ह्रदय का ह्रदय से
क्षणिक संस्पर्ष किया
हाँथ में हाँथ देकर
एक सुरमई लै समां गई
मधुर इस स्पर्श के संसार में
कुछ भी नहीं था
पर बहुत कुछ बिखरा था पसरा था
यह वह क्षण था
जिसके लिए कोई शब्द नहीं
रचा जा सकता था अव्यक्त सुख I
यह वह क्षण था
जिसके लिए मनुष्य शब्द गढ़ते गढ़ते थक गया
हताशा से जूझ रहा है
यह वही क्षण था
जिसके लिए तमाम रचनात्मकता बाद भी
साहित्य ,कला ,साम के प्रदेताओं ने
अकथ , अगोचर
अगम्य ,अरूप ,स्वरुप,
सब कुछ कहा
कुछ भी नहीं कह पाए
यह वही क्षण था
एक इन्द्रधनुक्षी स्वप्न की
पकड़ से दूर
सुस्म्रती की तरह
रचना अच्छी है। बधाई।
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