Friday, 14 January 2011
अभ्युदय की चाह में.
खोजता रह जाऊंगा जिन्दगी का अर्थ मै
विषय गत महती धरा में
आइना होके यहाँ
सूक्ष्मता भी अल्पग्यता से
मिट कर न छिप पायेगी
विजय पाउँगा मै इस धरा में
स्याह सी उस उर्मी पर
अहसास हो जायेंगे समग्र अभिसिंचित
अवशेष हो जाएगी पहली किरण
फिर भी रहनुमां में
उम्र की दरिये में गोते
लेते रहेंगे अनवरत
अभ्युदय की चाह में..
विषय गत महती धरा में
आइना होके यहाँ
सूक्ष्मता भी अल्पग्यता से
मिट कर न छिप पायेगी
विजय पाउँगा मै इस धरा में
स्याह सी उस उर्मी पर
अहसास हो जायेंगे समग्र अभिसिंचित
अवशेष हो जाएगी पहली किरण
फिर भी रहनुमां में
उम्र की दरिये में गोते
लेते रहेंगे अनवरत
अभ्युदय की चाह में..
भूल कर भी इस जहाँ के कारवां में
भूल कर भी इस जहाँ के कारवां में
शाम के ढलते न रुकना
वक्त कि फितरत में
कहीं दाग न लग जाय
और फिर हम भी यहाँ पर
राहबर हो जांय
जब तलक यह जिन्दगी
लगे हमें कब्र गाह
चांदनी क़ी सांध्य में
कहीं सितारे न हम बन जांय
रूप क़ी फितरत यही
होती यहाँ हर वक्त ,
दर्द के ही मायनों से,दर्द न मिट जाय
हो सके तो जिन्दगी में विस्मृत हो ,ऐ रह गुजर
विस्मृत न हो तो सांध्य होते ही सदा
अक्स बनकर दीप से संबद्धता हो जाय
भूल कर भी इस जहाँ के कारवां में
शाम के ढलते न रुकना
वक्त कि फितरत में
कहीं दाग न लग जाय
और फिर हम भी यहाँ पर
राहबर हो जांय
जब तलक यह जिन्दगी
लगे हमें कब्र गाह
चांदनी क़ी सांध्य में
कहीं सितारे न हम बन जांय
रूप क़ी फितरत यही
होती यहाँ हर वक्त ,
दर्द के ही मायनों से,दर्द न मिट जाय
हो सके तो जिन्दगी में विस्मृत हो ,ऐ रह गुजर
विस्मृत न हो तो सांध्य होते ही सदा
अक्स बनकर दीप से संबद्धता हो जाय
भूल कर भी इस जहाँ के कारवां में
उन दिनों
उन दिनों मै उसका नया प्रेमी था
इसका आशय यह नहीं कि वो शैम्पू कि तरह
प्रेमी बदलती रहती है
वह सचमुच एक सच्ची लड़की थी , है
शायद उतना ही सच्चा उसका प्रेम भी
उन दिनों जो वह कर रही थी मुझसे
जानते हुए भी एक दिन मैंने उससे पूंछा
जानने कि कोशिस क़ी
क़ि क्या तुमने पहले भी
किसी और से प्रेम किया है
वह कुछ क्षण सोंचती रही
फिर बोली हाँ बहुत प्रेम किया है
आज भी करती हूँ आगे भी करती रहूंगी
मगर उसने मुझे धोखा दिया
मुझसे एक झूंठ बोला
शायद मैंने धोखा खाने के लिए ही प्रेम किया था
धोखे का कोई नाम नहीं होता
प्रेम कही न कही शायद एक मूर्खता है
अच्छा - मैंने कहा , तो क्या तुम्हे नहीं लगता
क़ि तुम उसे फिर से दोहरा रही हो
मैंने पुनः उससे पूछा
अपने प्रेमी के साथ किस मोड़ तक चली हो
किस हद तक चली हो
प्रेम का मतलब ...
दरअसल मै जानना चाहता था
जो लड़की मेरे साथ रहकर
मुझसे कुछ भी खास नहीं कह सकी
उसने प्रेम क़ि कितनी सीढियाँ उतरी है
मै क्यों यह जानना चाहता था मै भी नहीं जनता
परन्तु वह मुझसे उतना नहीं तो कुछ तो प्रेम कर ही रही थी
जितना क़ि शायद उसने अपने दुसरे प्रेमी से कभी किया होगा ....
उन दिनों
इसका आशय यह नहीं कि वो शैम्पू कि तरह
प्रेमी बदलती रहती है
वह सचमुच एक सच्ची लड़की थी , है
शायद उतना ही सच्चा उसका प्रेम भी
उन दिनों जो वह कर रही थी मुझसे
जानते हुए भी एक दिन मैंने उससे पूंछा
जानने कि कोशिस क़ी
क़ि क्या तुमने पहले भी
किसी और से प्रेम किया है
वह कुछ क्षण सोंचती रही
फिर बोली हाँ बहुत प्रेम किया है
आज भी करती हूँ आगे भी करती रहूंगी
मगर उसने मुझे धोखा दिया
मुझसे एक झूंठ बोला
शायद मैंने धोखा खाने के लिए ही प्रेम किया था
धोखे का कोई नाम नहीं होता
प्रेम कही न कही शायद एक मूर्खता है
अच्छा - मैंने कहा , तो क्या तुम्हे नहीं लगता
क़ि तुम उसे फिर से दोहरा रही हो
मैंने पुनः उससे पूछा
अपने प्रेमी के साथ किस मोड़ तक चली हो
किस हद तक चली हो
प्रेम का मतलब ...
दरअसल मै जानना चाहता था
जो लड़की मेरे साथ रहकर
मुझसे कुछ भी खास नहीं कह सकी
उसने प्रेम क़ि कितनी सीढियाँ उतरी है
मै क्यों यह जानना चाहता था मै भी नहीं जनता
परन्तु वह मुझसे उतना नहीं तो कुछ तो प्रेम कर ही रही थी
जितना क़ि शायद उसने अपने दुसरे प्रेमी से कभी किया होगा ....
उन दिनों
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