--------------------------------------
---------------------------------------------------------
-------------------------------------
चहका है चिड़ियों का झुण्ड ,
हँसना क्या शुरू किया तुमने
फैली है गुलाब की सुगंध ,
जूडा क्या खोल दिया तुमने
स्वप्नों के सुन्दर स्वप्न लोक की,
पहली सुन्दर परी तुम्ही हो
गुलाब पुष्प सी मधुमय दिखती ,
लगता है अभी अभी टहली हो
लगता हूँ मै बिका बिका ,
ऐसा क्या मोल दिया तुमने
फैली है गुलाब की सुगंध ,
जूडा क्या खोल दिया तुमने
एक झलक उस मधुमय की
करवाती है सम्पूर्ण समर्पण,
करवाती है सम्पूर्ण समर्पण,
रति सा दिखता वह मूर्त सौन्दर्य
जैसे दिवाकर की पहली किरण,
जैसे दिवाकर की पहली किरण,
लगता हूँ मै लुटा लुटा
ऐसा क्या लूट लिया तुमने
ऐसा क्या लूट लिया तुमने
फैली है गुलाब की सुगंध ,
जूडा क्या खोल दिया तुमने
--------------------------------------
---------------------------------------------------------
-------------------------------------
स्वप्नों के सुन्दर स्वप्न लोक की,
ReplyDeleteपहली सुन्दर परी तुम्ही हो
गुलाब पुष्प सी मधुमय दिखाती ,
लगता है अभी अभी टहली हो
सुन्दरता को बहुत गहराई से अभिव्यक्त किया है आपने ...आपका आभार
लगता हूँ मै बिका बिका ,
ReplyDeleteऐसा क्या मोल दिया तुमने
फैली है गुलाब की सुगंध ,
जूडा क्या खोल दिया तुमने
अरविन्द शुक्ल जी वाह क्या बात कही है जूड़ा क्या खोल दिया तुमने ,छोटी बड़ी रचनाएँ आप की प्यार मनहर हैं बहुत सुन्दर शुरुआत है लिखते रहिये हम भी आप सब के साथ हिंदी के बढ़ावा के लिए भ्रमर का दर्द और दर्पण ले बढ़ चले हैं आइये कृपया अपना समथन व् मार्गदर्शन दें
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५