Saturday 20 November 2010

अव्यक्त सुख

उस दिन
जब तुमने
क्षण भर को
घोर चिंता अविशवास  में समाये
ह्रदय का ह्रदय से 
क्षणिक  संस्पर्ष   किया
हाँथ में हाँथ देकर
एक सुरमई लै समां गई
मधुर इस स्पर्श  के संसार में
कुछ भी नहीं था
पर बहुत कुछ बिखरा था पसरा था
यह वह क्षण था
जिसके लिए कोई शब्द नहीं
रचा जा सकता था अव्यक्त सुख I
यह वह क्षण था
जिसके लिए मनुष्य  शब्द गढ़ते गढ़ते थक गया
हताशा से जूझ रहा है
यह वही क्षण था
जिसके लिए तमाम रचनात्मकता बाद भी
साहित्य ,कला ,साम  के प्रदेताओं ने
अकथ , अगोचर
अगम्य ,अरूप ,स्वरुप,
सब कुछ कहा
कुछ भी नहीं कह पाए
यह वही क्षण था
एक इन्द्रधनुक्षी स्वप्न की
पकड़ से दूर
सुस्म्रती की तरह

खूबसूरती क्या है?

कल मैने खुदा से पूछा कि खूबसूरती क्या है?

तो वो बोले खूबसूरत है वो लब जिन पर दूसरों के लिए एक दुआ है

खूबसूरत है वो मुस्कान जो दूसरों की खुशी देख कर खिल जाए

खूबसूरत है वो दिल जो किसी के दुख मे शामिल हो जाए और किसी के प्यार के रंग मे रंग जाए

खूबसूरत है वो जज़बात जो दूसरो की भावनाओं को समझे

खूबसूरत है वो एहसास जिस मे प्यार की मिठास हो

खूबसूरत है वो बातें जिनमे शामिल हों दोस्ती और प्यार की किस्से कहानियाँ

खूबसूरत है वो आँखे जिनमे कितने खूबसूरत ख्वाब समा जाएँ

खूबसूरत है वो आसूँ जो किसी के ग़म मे बह जाएँ

खूबसूरत है वो हाथ जो किसी के लिए मुश्किल के वक्त सहारा बन जाए

छोटी छोटी छीतराई यादें----*

छोटी छोटी छीतराई यादें
बिछी हुई हैं लम्हों की लॉ पर.
नंगे पैर उनपर चलते-चलते
इतनी दूर चले आए
की अब भूल गये हैं –
जूते कहाँ उतारे थे.

Sunday 14 November 2010

मेरी माँ













मेरी माँ
मुझे आज भी याद है
आँखें जैसे प्रेम का पर्याय
उसकी मुस्कराहट के सामने
दुनिया की हर खुबसूरत चीज़ कम ही नज़र आती
उसकी हर छुअन प्रेम की चाशनी से सराबोर
मेरे अन्दर के इंसान को प्रेम की परिभाषा समझाती
मैं उसकी गोद में  लेटा
एकटक उसे ही देखता
जैसे वो सारा प्रेम
वो सारा स्पर्श
वो सारी अनुभूति
मैं ही पा जाना चाहता था.
जो मैंने उस वक़्त महसूस किया
बयां नहीं कर सकता.
जो प्रेम उसने मुझे दिया है
उसका कोई पर्याय नहीं.
लेकिन प्रकृति के नियमों से बंधा नवजात शिशु
कह नहीं सका कि मुझे अपनी माँ से प्यार है
जीवन के हर परेशानियों से लडती हुई
उसकी आँखें थक गयी हैं.
अब वो युवती नहीं रही.
उसकी आँखें अब कमजोर हो गयी हैं.
उसके शरीर पे उम्र का राक्षस हावी हो गया है.
मेरे ह्रदय में कई तरह के सवाल उठते  हैं.
क्या में उस कल्पवृक्ष को खो दूंगा
जो कभी मुझे अपनी  छाँव में लोरीयाँ गा कर
चैन की नींद सुलाता था, 
क्या वो उँगलियाँ अब हमेशा के लिए मुझसे छिन जायेंगी
जिन्हें पकड़ कर मैंने ज़िन्दगी के हर कठिन रास्ते को आसानी से पार किया ?
क्या वो ममता और निस्वार्थ प्रेम भरी आँखें हमेशा के लिए बंद हो जाएँगी?
वो आलिंगन जिसने धरती पर कभी मेरा स्वागत किया था
क्या मैं बिछड़ जाऊंगा?
आह! ये वेदना मुझसे अब बर्दाश्त नहीं होती.
माँ ने ज़िन्दगी के लगभग हर मोड़ पर मेरा साथ दिया.
कभी बुरे से लड़ने की ताकत दी
तो कभी अच्छा करने पर होले होले मेरे बालों को सहला कर मेरा उत्साह बढाया.
लोग आये  मेरी ज़िन्दगी में
अपना किरदार निभा कर चले गए
माँ ने कभी मुझे अपने से अलग नहीं होने दिया.
अपनी दुआ, ममता और प्रेम की दवा से मेरा साथ दिया.
माँ, ये शब्द ही ऐसा  है
हर इंसान चाहे वो छोटा हो या बड़ा
अमीर हो या गरीब
ताकतवर हो या कमजोर
इस शब्द से भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है
मैं भी जुड़ा हूँ
मेरा तो पहला आखरी प्रेम मेरी माँ है
आज वो वृक्ष
जिसने कभी अपने छाँव तले मुझे जीवन के सूर्यताप से बचाया
उस वृक्ष का एक बीज मेरे अन्दर मौजूद है
जो हमेशा मुझे इस बात की प्रेरणा देता है
कि स्वयं को एक विशाल वृक्ष बनाओ
इतना विशाल
न चाहते हुए भी इंसान जीवन के ताप से बचने के लिए
तुम्हारे छाँव मैं चैन के दो पल गुजार सके
अपनी माँ की इस प्रेरणा का
मैं जीवन पर्यन्त अनुशरण करूँ
शायद इससे अच्छा उपहार
मेरी माँ के लिए कुछ न होगा.

Saturday 13 November 2010











उम्र के ठहराव
जिन्दगी गुजरने के चिन्ह
गुजरा हुआ कल
आने वाला कल
रास्तों के निशां
मंजिल की पहचान
गुजरे हुए पल
आने वाले पल
इससे भी बढ़ कर
यादों के निशां
कुछ भी पता नहीं चलता
बस
उम्र गुजरने के निशां
जिस्म के रोयें रोयें में नजर आते हैं