Friday 14 January 2011

अभ्युदय की चाह में.

खोजता रह जाऊंगा जिन्दगी का अर्थ मै
विषय गत महती धरा में
आइना होके यहाँ
सूक्ष्मता भी अल्पग्यता  से
मिट कर न छिप पायेगी
विजय पाउँगा मै इस धरा में
स्याह सी उस उर्मी पर
अहसास हो जायेंगे समग्र अभिसिंचित
अवशेष हो जाएगी पहली किरण
फिर भी रहनुमां में
उम्र की दरिये  में  गोते
लेते रहेंगे अनवरत
अभ्युदय की चाह में..

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