Saturday 20 November 2010

अव्यक्त सुख

उस दिन
जब तुमने
क्षण भर को
घोर चिंता अविशवास  में समाये
ह्रदय का ह्रदय से 
क्षणिक  संस्पर्ष   किया
हाँथ में हाँथ देकर
एक सुरमई लै समां गई
मधुर इस स्पर्श  के संसार में
कुछ भी नहीं था
पर बहुत कुछ बिखरा था पसरा था
यह वह क्षण था
जिसके लिए कोई शब्द नहीं
रचा जा सकता था अव्यक्त सुख I
यह वह क्षण था
जिसके लिए मनुष्य  शब्द गढ़ते गढ़ते थक गया
हताशा से जूझ रहा है
यह वही क्षण था
जिसके लिए तमाम रचनात्मकता बाद भी
साहित्य ,कला ,साम  के प्रदेताओं ने
अकथ , अगोचर
अगम्य ,अरूप ,स्वरुप,
सब कुछ कहा
कुछ भी नहीं कह पाए
यह वही क्षण था
एक इन्द्रधनुक्षी स्वप्न की
पकड़ से दूर
सुस्म्रती की तरह

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