Saturday, 18 October 2025

प्रेम और वियोग

 

अध्याय 1 — सन्नाटा और प्रस्थान


संध्या की लालिमा में, दूर क्षितिज की ओर,

हृदय की नीरस गुफा में दीपक जलता है।

प्रेम की लौ कोमल,

और यादों की धुंध में खोई।


सन्नाटा कहता है — “तू अकेला है,”

पर भीतर की गहराई मुस्कुराती है,

“तू कभी अकेला नहीं, पर पूरा भी नहीं।”

मनुष्य कदम बढ़ाता है पथ पर,

जहाँ हर लहर, हर पत्ता,

उसके भीतर छिपे वियोग को छूता है।


अध्याय 2 — प्रेम का अलाप


प्रीतम, तू मेरी आँखों में बसता है,

जैसे नभ में चाँद का प्रतिबिंब।

तेरी मुस्कान, मेरे भीतर

अनंत गीत गाती है,

और हर स्पर्श,

मन के तारों को झंकृत करता है।


वसंत की हवाओं में तेरा नाम बहता है,

फूलों की हर पंखुड़ी तुझसे बातें करती है।

प्रेम की मधुरता, जीवन की पूर्णता,

और मन कहता है —

“तू ही मेरी आराध्य, तू ही मेरी पूजा।”


अध्याय 3 — वियोग का धुँधला छाया


पर सूर्य डूबता है,

और वियोग की ठंडी छाया आती है।

मन हिलता है, काँपता है,

हर धड़कन सवाल करती है —

“क्यों दूर हो, क्यों खो गया है?”


रात की चादर तानकर,

तारे गुनगुनाते हैं पुरानी यादें।

हर सितारा तेरी आँखों का प्रतिबिंब है,

हर मंद प्रकाश मेरी पीड़ा।

और मैं, इस छायामय संसार में,

तुम्हारे बिना भी तुम्हें खोजता हूँ,

तुम्हारे साथ भी खुद से दूर हूँ।


अध्याय 4 — प्रकृति और प्रतीक


पेड़, नदियाँ, पर्वत, और हवा—

सब कुछ मेरे भीतर उतरता है।

हर पत्ता, हर लहर,

मुझे याद दिलाता है

कि प्रेम और वियोग दोनों ही जीवन के रंग हैं।


सागर की गहराई में तेरा रूप चमकता है,

वृक्षों की शाखाएँ मेरे दर्द को सहलाती हैं।

प्रकृति का हर रूप

मुझे आत्मा की ओर खींचता है,

जहाँ अकेलापन भी प्रेम का संदेश बन जाता है।


अध्याय 5 — संघर्ष और आत्मा का बोध


मनुष्य गिरता है, उठता है,

और अपने भीतर खोजता है।

हर आँसू, हर हँसी,

कर्म और समय का प्रतिबिंब है।


प्रेम की मिठास, वियोग की ठंडक,

दोनों मिलकर आत्मा को जगाते हैं।

मन कहता है—“मैं अकेला नहीं,”

और हृदय फुसफुसाता है—“मैं अकेला ही पूरा हूँ।”


अध्याय 6 — मुक्ति की झिलमिलाहट


सूरज उगता है, और प्रकाश फैलता है।

वियोग की छाया अब केवल मार्गदर्शक है,

प्रेम की लौ दीपक बन जाती है।


मनुष्य समझता है — जीवन केवल समय नहीं,

यह अनुभव, प्रेम, संघर्ष और वियोग का संगम है।

हर क्षण, हर धड़कन,

एक गीत बन जाती है,

और गीत आत्मा का प्रकाश।


अध्याय 7 — अंतर्दृष्टि और अनंत


प्रेम और वियोग, सुख और दुःख,

छाया और प्रकाश,

सभी मिलकर जीवन की कविता बनाते हैं।


मनुष्य अब केवल जीता नहीं,

बल्कि महसूस करता है, जानता है,

और आत्मा के साथ एक हो जाता है।

छाया के भीतर भी प्रकाश है,

अकेलेपन के भीतर भी साथ है,

और हर अंत के भीतर नई शुरुआत छिपी है।


जीवन, प्रेम, वियोग—

तीनों का संगम ही कविता है,

और कविता ही आत्मा की वास्तविकता।

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