Saturday, 18 October 2025

जीवन का सप्तक

 


अध्याय 1 – प्रस्थान (जीवन का प्रारंभ)


सूरज की पहली किरण से जागती है आत्मा,

सन्नाटे में गूँजती है अनकही पुकार।

मनुष्य अपने पथ पर चलता है,

कदमों में उत्साह, आँखों में प्रश्न,

और हृदय में अनंत आशा।

हर साँस कहती है — “तू यहाँ है, और तेरा मार्ग अभी शुरू हुआ है।”


अध्याय 2 – प्रकृति और प्रतीक


पत्तियों की सरसराहट, नदियों की धारा,

और आकाश की असीम छाया में

मनुष्य देखता है अपने भीतर का प्रतिबिंब।

प्रकृति के हर रूप में, हर रंग में

छिपा है उसका अस्तित्व,

और हर तितली, हर पत्ते की नर्मी

एक मौन संवाद बन जाती है।


अध्याय 3 – प्रेम और आकांक्षा


प्रेम आता है, अप्रत्याशित,

जैसे पहाड़ों की गूंज या सागर की लहर।

कभी मीठा संगीत बनकर,

कभी कांटों की छुअन देकर।

यह केवल भावना नहीं,

बल्कि आत्मा का जागरण है।

प्रेम में मिलता है जीवन का अर्थ,

और हर धड़कन में खुलता है असीम संसार।


अध्याय 4 – दुःख और अकेलापन


रात के अंधेरे में,

अकेलापन हृदय को थाम लेता है।

आँसू, निराशा, और वीरानी

मनुष्य को उसकी सीमाओं का बोध कराते हैं।

पर उसी सन्नाटे में,

एक हल्की आवाज़ भी गूँजती है —

“तू अकेला नहीं, तू केवल अपने भीतर के प्रकाश से मिला नहीं।”


अध्याय 5 – संघर्ष और परीक्षा


जीवन देता है चुनौतियाँ,

कभी तीखे काँटे, कभी कठोर मार्ग।

मनुष्य लड़ता है, गिरता है, उठता है,

और हर बार अपने भीतर की शक्ति को पहचानता है।

संघर्ष केवल शारीरिक नहीं,

यह आत्मा का शोधन है,

जो ज्ञान, साहस और विवेक से सशक्त होता है।


अध्याय 6 – आत्मा का बोध


जब सारी भूलें, सारे भ्रम मिट जाते हैं,

मनुष्य अपनी आत्मा के पास पहुँचता है।

वह समझता है — जीवन, प्रेम, दुःख, संघर्ष,

सब एक ही धारा के अलग रूप हैं।

छाया के भीतर भी प्रकाश है,

अँधेरे के भीतर भी उजाला है,

और अकेलापन भी केवल आत्मा की खोज का माध्यम है।


अध्याय 7 – मुक्ति और अनंतता


अंत में, जीवन स्वयं को पूर्णता में पाता है।

प्रेम, संघर्ष, दुःख, और आनंद

सब मिलकर एक गीत बन जाते हैं —

एक गीत जो कहता है:

“तू जीवन है, तू प्रेम है, तू अनंत है।”

मनुष्य अब केवल जीता नहीं,

बल्कि महसूस करता है, जानता है, और आत्मा के साथ मेल खाता है।

यही है जीवन का अंतिम रहस्य —

अनंत यात्रा, जिसमें हर क्षण प्रकाश, छाया और प्रेम का संगम है।

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