सन्नाटा मेरे चारों ओर फैला है,
जैसे रात ने अपने आँचल में सब कुछ छुपा लिया हो।
मन मेरा बहता है अनजानी नदियों की तरह,
जहाँ हर लहर का स्पर्श मुझे मेरे भीतर खींच लेता है।
हवाओं की हल्की सरसराहट में
मैं सुनता हूँ अपनी आत्मा की पुकार।
कभी वह मीठा संगीत लगता है,
कभी कांटों की खुरखुराहट।
और मैं समझता हूँ — यही ज़िंदगी है,
सुख और दुःख के बीच झूलती,
एक अनंत संतुलन।
प्रकृति की हर छाया मेरे भीतर उतरती है,
पत्तियों की हर हिलती धार में,
नदियों की हर बूँद में,
सूरज की हर किरण में।
मन मेरा पूछता है—
“क्या मैं अकेला हूँ?”
और पेड़ों की सरसराहट हँसकर कहती है—
“तू कभी अकेला नहीं, तू बस अपनी पहचान भूल गया है।”
प्रेम, वही सदा अस्पष्ट और अनंत,
जैसे धुंध में चमकता कोई दीपक।
कभी मुझे उसके पास खींचता है,
कभी उसकी अनुपस्थिति में कांपने देता है।
लेकिन प्रेम ही तो है जो जीवन को अर्थ देता है,
जो हर क्षण को उजागर करता है,
जो आत्मा को अपने आप से मिलाता है।
रात के बाद सुबह आती है,
लेकिन सुबह केवल प्रकाश नहीं लाती,
बल्कि प्रश्न, संघर्ष और उम्मीद भी लेकर आती है।
ज़िंदगी केवल गुजरने वाला समय नहीं,
यह तो एक पथ है —
जो भीतर की अनंत गहराई में ले जाता है।
मैं चलता हूँ उस पथ पर,
कदमों में थकावट, हृदय में संदेह,
आँखों में सपना और हाथों में खालीपन।
लेकिन हर कदम मुझे मेरी आत्मा की ओर ले जाता है,
जहाँ अकेलापन भी स्नेह की तरह महसूस होता है,
और हर आँसू भी प्रेम का अंग बन जाता है।
अँधेरा और प्रकाश, खुशी और दुःख,
सब मिलकर जीवन की कविता रचते हैं।
एक कविता जिसमें हर श्वास, हर धड़कन,
एक गीत बन जाती है —
गीत जो कहता है:
“तू जीवन है, तू प्रेम है, तू अनंत है।”
और मैं समझता हूँ—
ज़िंदगी केवल जीने का नाम नहीं,
यह आत्मा को खोजने का, प्रेम को पहचानने का,
और हर पल अपने भीतर की गहराई में उतरने का नाम है।
क्योंकि जब हम भीतर झाँकते हैं,
तब ही पता चलता है—
छाया के भीतर भी प्रकाश है,
अकेलेपन के भीतर भी साथ है,
और हर समाप्ति के भीतर नई शुरुआत छुपी है।
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