"जीवन का प्रवाह"
हवाओं में बिखरी ठंडी साँसों की तरह,
ज़िंदगी आती है, बहती है, और चली जाती है।
कभी मुस्कान की तरह हल्की,
कभी आँसुओं की तरह भारी,
और हर मोड़ पर छोड़ जाती है प्रश्नों का साया।
पथिक हूँ मैं इस संसार के वीरान रास्तों पर,
जहाँ पेड़ों की पत्तियों में छुपा है रहस्य,
और नदियों की गहरी धारा में प्रतिबिंबित है समय।
मन मेरा काँपता है,
कभी सुख की ओस में भीगकर,
कभी अकेलेपन की छाँव में थककर।
हृदय की कोमल धड़कन कहती है —
“प्रेम ही है जीवन का सच्चा गीत।”
लेकिन प्रेम भी कहीं खो जाता है,
जैसे धुंध में गुम होती रौशनी,
और आत्मा, बस अपने सन्नाटे में घूमती रहती है।
सांझ के रंग घुलते हैं आकाश में,
और मैं देखता हूँ—
हर लालिमा, हर नीला छाया,
मेरी उम्मीदों और डर का चित्र बना रहा है।
ज़िंदगी केवल सुख-दुःख का मेल नहीं,
बल्कि हर क्षण एक चेतना का उद्घोष है,
जो कहता है—“तुम अपनी सीमाओं से परे हो।”
कभी लगता है, मैं अकेला हूँ इस दुनिया में,
फिर एक चिड़िया की किलकारियाँ सुनाई देती हैं,
और मेरे भीतर की तन्हाई गुनगुनाती है—
“तू भी प्रकृति का हिस्सा है, तू भी अनंत है।”
अँधेरा भी अपनी चमक लेकर आता है,
और मैं समझता हूँ—
जीवन में दर्द, विरह और संघर्ष केवल रास्ते हैं,
न कि अंत।
वे हमें भीतर ले जाते हैं,
जहाँ हम अपने असली स्वरूप से मिलते हैं,
जहाँ हमारी आत्मा, प्रेम और अनुभव का संगम बन जाती है।
तो मैं चलता हूँ, धीमे कदमों से,
हर धड़कन को महसूस करता हूँ,
हर आँसू में सीख पाता हूँ,
और हर मुस्कान में जीवन की खुशबू।
क्योंकि यही है ज़िंदगी—
छायाओं में झूलती, प्रकाश की ओर बढ़ती,
एक अनंत यात्रा,
जिसमें प्रेम, दुःख, अकेलापन और स्नेह
साथ-साथ चलते हैं।
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