ज़िंदगी जैसे बहती नदी,
कभी शांत, कभी उफनती लहरों जैसी।
और प्रेम…
वो वो किनारा है, जहाँ मैं थमकर देख पाता हूँ,
कि हर बहाव में भी कोई स्थिरता है।
ज़िंदगी हमें छोड़कर नहीं जाती,
बस हमें रास्तों पर आज़माती है।
और प्रेम…
वो हाथ है जो पकड़कर कहता है —
“डर मत, मैं साथ हूँ।”
कभी ख़ुशियों की बारिश होती है,
कभी आँसुओं की धारा बहती है।
पर प्रेम…
वो धूप है जो बारिश के बाद भी चमकती है,
और ज़िंदगी को गर्माहट देता है।
जब प्रेम साथ हो,
तो हर पल की धड़कन संगीत बन जाती है।
और ज़िंदगी…
वो कविता बन जाती है,
जिसका हर शब्द तुझसे ही जुड़ा होता है।
ज़िंदगी और प्रेम —
दोनों एक-दूसरे में बँधे हैं,
एक बिना दूसरे के अधूरी है,
और जब साथ हों, तो हर सांस एक चमत्कार बन जाती है। ✨
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