Saturday, 18 October 2025

सृष्टि पुनरुत्थान


अध्याय 1 — विनाश का आभास

अँधेरा छाया है नभ के चारों ओर,

सृष्टि थर्राती है, काँपती है,

और मनुष्य देखता है अनंत प्रश्न।

सूरज की लालिमा फीकी पड़ती है,

नदियाँ सूख रही हैं, हवाएँ निरंतर रो रही हैं।

पत्तियाँ झूलती हैं, वृक्ष बिलखते हैं,

और पृथ्वी अपने गर्भ में दुखों की धारा बहाती है।


मनुष्य पूछता है—

“क्यों हो रहा यह विनाश? क्या यह अंत है?”

और हवा फुसफुसाती है—

“यह केवल संक्रमण है,

नष्ट होने से पूर्व पुनर्जन्म का बीज अंकुरित होता है।”



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अध्याय 2 — अंधकार का राज्य


रात लंबी और ठंडी है,

अंतरिक्ष में अनगिनत तारे सो रहे हैं।

समुद्र उठता है, तूफान की भाँति,

वृक्ष अपनी जड़ों से छूटते हैं,

और पर्वत चुपचाप टूटते हैं।


मनुष्य डरता है, और हृदय कांपता है,

पर भीतर की आवाज़ कहती है—

“अंधकार भी केवल मार्ग है,

जो प्रकाश को तैयार करता है।”


विनाश का हर रूप

एक परीक्षा है,

सत्य और असत्य, धर्म और अधर्म,

प्रकृति और मानव,

सभी मिलकर जीवन के भीतर नया बीज छुपाते हैं।



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अध्याय 3 — पुनरुत्थान की चेतना


तभी एक हल्की रौशनी उभरती है,

जैसे दीपक की लौ अँधेरे में।

मनुष्य देखता है —

पृथ्वी हरे रंग में लौट रही है,

नदियाँ फिर बहने लगी हैं,

फूल खिल रहे हैं, पक्षियों की चहचहाहट गूंज रही है।


विनाश के बीच भी

बीज अंकुरित हो रहा था।

संघर्ष के अँधकार में भी

प्रेम, चेतना और साहस जीवित रहे।


मनुष्य समझता है —

सृष्टि नष्ट नहीं होती,

बल्कि रूपांतरित होती है।

हर अंत, हर दुःख, हर विघटन

सिर्फ़ नए आरंभ का मार्ग बनाता है।



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अध्याय 4 — संघर्ष और शाश्वत नियम


प्रकृति का नियम कठोर है,

पर न्याय और संतुलन से भरा।

विनाश और पुनरुत्थान

दो किनारे हैं एक नदी के।


मनुष्य अपने कर्मों का बोध करता है,

और देखता है—

विनाश केवल दहकता हुआ अग्नि नहीं,

यह अनुभूति और चेतना की परीक्षा है।


संघर्ष हर जीवन में आता है,

और वही शक्ति देता है

नए जीवन, नए मार्ग और नई आशा का।



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अध्याय 5 — प्रेम और पुनर्जन्म


प्रेम केवल जीवों के बीच नहीं,

बल्कि प्रकृति और ब्रह्मांड के बीच भी है।

जैसे सूरज की रौशनी

धरा पर जीवन लाती है,

वैसे प्रेम भी विनाश के बाद

सृजन और पुनरुत्थान की ऊर्जा बन जाता है।


मनुष्य देखता है—

हर मृत्यु में जीवन अंकुरित होता है,

हर टूटने में जोड़ने की क्षमता है,

और हर अंधकार में प्रकाश का बीज छिपा है।



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अध्याय 6 — चेतना और दर्शन


सृष्टि का पुनरुत्थान केवल बाहरी रूप में नहीं,

यह आत्मा की गहन चेतना में भी होता है।

मनुष्य, प्रकृति और ब्रह्मांड

एक ही प्रवाह में बहते हैं।


विनाश और निर्माण, दुःख और आनंद,

सपने और यथार्थ—

सभी मिलकर ब्रह्मांड की कविता बनाते हैं।

और मनुष्य समझता है—

सत्य, प्रेम, कर्म, और धैर्य

सभी मिलकर अनंत चक्र रचते हैं।



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अध्याय 7 — अनंत यात्रा और पूर्णता


सूर्य उदित होता है, प्रकाश फैलता है,

सभी जीवन नए रंगों में नहाते हैं।

सृष्टि पुनः पूर्ण होती है,

अंतरिक्ष, पृथ्वी और आत्मा

सब मिलकर गूंजते हैं—

“अविनाशी है यह यात्रा,

अविनाशी है यह प्रेम,

अविनाशी है यह चेतना।”


मनुष्य अब केवल देखता नहीं,

वह अनुभव करता है, जानता है,

और अनंत के साथ जुड़ जाता है।

विनाश और पुनरुत्थान,

प्रेम और संघर्ष,

सभी मिलकर जीवन और ब्रह्मांड की महाकाव्य कविता बनाते हैं।

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