Saturday, 18 October 2025

प्रेम— जो मैं हूँ, जो तू है


प्यार क्या है, ये कोई शब्द नहीं,

ये वो मौन है जहाँ सब कुछ कहा जाता है।

जहाँ दो आत्माएँ मिलकर ये भूल जाती हैं,

कि कौन मैं हूँ, और कौन तू है।


कभी लगता है, तू मुझमें समाई है,

जैसे नदी अपने सागर में खो जाती है।

तेरा होना अब मेरा होना है,

और मेरा वजूद तुझसे ही बन पाता है।


हम दोनों अलग नहीं,

बस दो छवियाँ हैं एक ही रोशनी की।

जैसे सूरज और उसकी किरणें,

अलग होकर भी एक-दूसरे में जीती हैं।


कभी-कभी सोचता हूँ,

शायद प्यार सिर्फ़ साथ होना नहीं,

बल्कि उस वक़्त का नाम है

जब तेरे बिना भी तू मेरे भीतर ज़िंदा रहती है।


प्यार शरीरों का मिलन नहीं,

ये आत्माओं का संवाद है,

जहाँ शब्द नहीं चलते,

बस मौन अपना अर्थ बाँटता है।


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