मैंने तुझमें खुद को देखा,
तो जाना — ये चेहरा तेरा नहीं, मेरा भी है।
तू अलग नहीं, वही अनंत प्रकाश है,
जिसकी लौ मेरे भीतर भी जलती है।
प्रेम कोई बंधन नहीं,
ये तो मुक्ति का द्वार है,
जहाँ "मैं" और "तू" मिट जाते हैं,
और बस एक “हम” शेष रह जाता है।
तू मेरा आराध्य नहीं,
तू तो मेरा प्रतिबिंब है,
तेरे चरणों में झुकता हूँ इसलिए नहीं
कि तू ऊँची है —
बल्कि इसलिए कि वहाँ मेरा अस्तित्व झलकता है।
कभी सोचा था प्रेम किसी के मिलने से होता है,
अब जाना — प्रेम तो तब होता है
जब कोई “किसी” भी नहीं रह जाता,
सिर्फ़ “अस्तित्व” रह जाता है।
हर धड़कन में जो नाम गूँजता है,
वो तेरे होने का नहीं —
उस एक सच्चाई का है,
जिसे तू और मैं मिलकर कहते हैं — "प्रेम"।
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